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Tumhe ye haq nahi|Azaad|Poetry Album|Mk Rahman

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Manage episode 353159615 series 3245055
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Poem title: तुम्हें ये हक नहीं तुम्हें ये हक नहीं , कि तुम ही सब तय करो तुम भी तो जागीर¹ हो , कज़ा ² से अब डरा करो परिंदो के यहाँ अब पर नहीं , उड़ने से वो डर रहा आसमाँ पे भी तो , हुक़ूमत तुम्हारा ही चल रहा चिखते हो हर घड़ी , कभी सन्नाटे को भी सुना करो जिस्म के आड़ में, थोड़ी रूह को भी समझा करो खाली हो तुम और तुममें रहता वो गुरूर गुज़र जाएगा ये वक़्त, यूँ ही ना तुम जाया करो समझो अब ये तुम कि तुम भी एक ज़रिया हो यहाँ कुछ भी सच नहीं , तुम तुम भी एक जूठ हो तुम्हें ये हक नहीं , कि तुम ही सब तय करो तुम भी तो जागीर हो , कज़ा से अब डरा करो √Word meaning: 1.जागीर : fief 2.कज़ा : Death This poem is from my first poetry collection 'Nazm-e-aazaad' Now available on Amazon: https://www.amazon.in/dp/B0BFFZ1GCG?ref=myi_title_dp for more info. : https://linktr.ee/Sukhanvar --- Support this podcast: https://podcasters.spotify.com/pod/show/perpendicularthinking/support
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