शिव पूजन की विधि तथा फल प्राप्ति | शिव पुराण : श्रीरुद्र संहिता- अध्याय 11
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इस कथा में शिव पूजन की विधि और फल प्राप्ति का वर्णन किया गया है। सूत जी ने ऋषियों को भगवान शिव की पूजा विधि बताई, जो व्यास जी से सनत्कुमार जी ने सीखी थी और फिर उपमन्यु जी ने भगवान श्रीकृष्ण को इसे सुनाया। इस विधि के अनुसार शिव पूजन दरिद्रता, रोग, दुख और शत्रुजनित पीड़ा का नाश करती है और जीवन में सुख-संपत्ति, स्वास्थ्य, संतान तथा शांति की प्राप्ति का मार्ग खोलती है।
शिव पूजन की विधि:
सुबह की तैयारी: ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गुरु और भगवान शिव का स्मरण करें। फिर अपनी जाति अनुसार गीता और शरीर की शुद्धि के लिए जल व मिट्टी का उपयोग करें।
दातुन और स्नान: दातुन से मुख शुद्ध करें, परंतु विशेष दिनों (अमावस्या, नवमी, आदि) में न करें। जलाशय में स्नान कर संध्या वंदन करें।
पूजा का प्रारंभ: गणेश पूजन के बाद शिवजी की स्थापना करें। तीन आचमन और प्राणायाम के साथ शिव जी का ध्यान करें।
पूजा सामग्री तैयार करें: कलश में जल, कुशा, चंदन, गंध, धूप, दीप, फूल आदि लेकर भगवान शिव का विधिपूर्वक पूजन आरंभ करें।
शिव का अभिषेक: ओंकार मंत्र से शिवजी का आवाहन कर पाद्य, अर्घ्य, और पंचामृत (दूध, दही, घी, गन्ने का रस और घृत) से अभिषेक करें। इसके बाद शुद्ध जल से शिवलिंग का स्नान कराएं। विशेष मंत्रों के साथ जलधारा बनाए रखें।
पूजन मंत्र: पवित्र मंत्र जैसे रुद्र मंत्र, मृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र से शिव की आराधना करें।
पूजा का समापन: भगवान शिव के चरणों में फूल अर्पित कर, धूप-दीप व नैवेद्य अर्पित करें। क्षमा याचना कर आशीर्वाद प्राप्त करें और हर जन्म में शिव भक्ति की प्रार्थना करें।
शिव पूजन का फल:
जो भक्त शिव की भक्ति व पूजा करता है, उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है, रोग-दुखों से मुक्ति मिलती है और कल्याण होता है। शिव भक्ति से सद्गुणों का विकास होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नारद का अभिभूत होना: नारद मुनि ब्रह्माजी से यह विधि जानकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। शिव भक्ति समस्त भोग और मोक्ष प्रदान करने का माध्यम है।
हर हर महादेव!
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